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Inspiration in Every Moment

प्रेरणा:-

अररिया कलमकारों की धरती है। महान स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध लेखक पंडित रामदेनी तिवारी द्विजदेनी और फणीश्वर नाथ रेणु ,ईसा फरताब जैसे लोगों का जन्म इसी धरती पर हुआ।अररिया की धरती पर खोजी पत्रकार दिवंगत स्व डॉ प्रो अशोक कुमार झा, स्व डॉ नवल किशोर दास नवल, स्व प्रो राधा रमण चौधरी, स्व हारून रसीद गाफिल,श्री विजय सिंह नाहटा,श्री सुब्रत सिंहा,श्री परवेज अलम,श्री बेदी झा,श्री चंद्रशेखर मल्लिक,श्री राजकुमार अग्रवाल,श्री अजातशत्रु अग्रवाल ,श्री सुदन सहाय ,श्री एलपी नायक ,श्री राजेंद्र सिंह राजू,जैसे क्रांतिकारी और जनप्रिय पत्रकार हुए। इनके द्वारा जनहित आवाज को उठाने,किए गए कार्यों और याद करने के लिए एक मंच पर आने की जरूरत महसूस हुई तो श्री परवेज आलम अलीग़ और श्री अमित कुमार अमन के पहल पर 03.01.2016 को जिला पत्रकार संघ,अररिया अंग्रेजी में District Press Association,Araria का गठन किया गया। गठन के समय ही तय हुआ कि हमेशा पदाधिकारी का चयन बिना वोटिंग के हर हाल में सर्वसम्मति से किया जाएगा। अबतक तीन बार पुनर्गठन हो पाया है।

अररिया में पत्रकारिता

स्वतन्त्रता संग्राम के समय जब पूरे भारत में पत्रकारिता लड़ाई का अहम हिस्सा बन गयी थी। उसी समय दस के दशक में 1918 में अररिया जिले के सिमरबनी गांव से अमर कथाकार, नाटककार एवं स्वतन्त्रता सेनानी पंडित रामदेनी तिवारी ‘द्विजदेनी’ के सम्पादकत्व में पहली पत्रिका “हितैषी” निकली। राष्ट्रीय विचारधारा को प्रभावित करने के साथ-साथ द्विजदेनीजी ने अपनी इस पत्रिका के माध्यम से युवकों को स्वतन्त्रता आन्दोलन में शरीक होने के लिए प्रोत्साहित किया। अर्थाभाव के चलते दो अंक निकलने के बाद “हितैषी” का प्रकाशन बंद हो गया। पुनः जून 1923 में यह फारबिसगंज से प्रकाशित हुआ। पत्रिका के चित्र कलकत्ता से छपते थे, वहीं पत्रिका भागलपुर के एंजिल प्रेस में छपती थी। यह पत्रिका भारत के साथ-साथ दूसरे अन्य देशों में भी जाती थी। विदेशों के रचनाकार अपनी रचना इस पत्रिका में प्रकाशन हेतु भेजते थे । अमर आंचलिक सहित्यकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा सम्पादित “नई दिशा” (पूर्णिया), पूरन साह के संचालन-सम्पादन में एक साप्ताहिक “लाल हिमालय” का चीनी आक्रमण के सन्दर्भ में प्रकाशन होता था। भूपनारायण झा द्वारा सम्पादित “नई क्रान्ति”, प्रो० कमला प्रसाद ‘बेखबर’ द्वारा सम्पादित “कोशी करंट”, हर्षवर्द्धन साह द्वारा “अररिया बुलेटिन”, स्व० हरदेव शास्त्री द्वारा “लोकमत”, एवं फारबिसगंज के भोलानाथ मंडल द्वारा पूर्णिया से “युगवाणी” का प्रकाशन रेणु की माटी एवं द्विजदेनीजी के कर्मक्षेत्र से हुआ था। 1975 से चन्द्रशेखर देव के द्वारा बारह पृष्ठों का एक साप्ताहिक पत्र “युवा-प्रयास” का प्रकाशन किया गया,जो तीन दशक से अधिक समय तक नियमित रूप से निकलता रहा।जिले में पत्रकारिता का अलख जगाने वाले विभूतियों में भागवतराम अग्रवाल और उनके पुत्र राजेंद्र अग्रवाल,सांवरमल अग्रवाल,प्रो.राधा रमण चौधरी,प्रो.मोतीलाल जैन,डा. एनएलदास,सत्यनारायण सिंह,बालेंद्र गुप्ता,सुभाष चंद्र मिश्र,नागेश्वर प्रसाद मधुप,आरके राजू,राजकुमार अग्रवाल,आरके चांद,आजातशत्रु अग्रवाल,अवधेश बच्चन,परवाहा के सुशील मिश्रा,विद्यानंद मिश्रा का अहम योगदान रहा। अररिया जिला में पत्रकारिता का अलख जगाने में कलमकारों में श्याम सुंदर प्रसाद,विनोद प्रसाद, डा नवल किशोर दास, डा प्रो अशोक कुमार झा, सूदन सहाय,एलपी नायक, हारुण रसीद गाफिल, चंद्रशेखर मल्लिक,सुब्रत सिन्हा, विजय सिंह नाहटा, डा.अशोक आलोक,अरुण मंडल,विष्णुदेव झा बेदी,जितेंद्र सिंह,फुलेंद्र मल्लिक,अमोद शर्मा,मृगेंद्र मणि,प्रशांत परासर,रामदेव झा, अमित अमन, सुनील आजाद,ज्योतिष झा,की लेखनी पत्रकारिता के वसूलों को कायम रखा। पत्रकारिता के बदलते आयामों के बीच क्षेत्रीय पत्रकारिता को बढ़ावा मिलने के बाद कई मेन स्ट्रीम के दैनिक पत्रों का जिला स्तरीय कार्यालय खुलने के बाद स्टाफ रिपोर्टर के रूप में कार्यालय प्रभारी ने भी क्षेत्रीय पत्रकारिता को गति प्रदान करने के साथ टीम के नेतृत्वकर्ता के रूप में बखूबी निर्वहन किया। समय के अनुसार फणीश्वरनाथ रेणु के कलमकारों ने भी पत्रकारिता के बदलते आयाम के बीच अपने को बदला।प्रिंट के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया अर्थात ब्रॉडकास्टिंग जर्नलिज्म में भी अपनी तूती मनवाई। मेन स्ट्रीम के ब्रॉडकास्टिंग पत्रकारिता में मुर्शीद रजा,पंकज कुमार रणजीत,राहुल कुमार ठाकुर,रवि कुमार भगत,नितेश आनंद,अमरेंद्र कुमार, राकेश भगत,शाहिद बशीर,अरुण कुमार,रुपेश कुमार,सतीश मिश्रा आदि ने भी समय अनुरूप अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।आज जिले में वेब जर्नलिज्म का भी बोलबाला है।बड़ी संख्या में न्यूज पोर्टल के माध्यम से आमजनों के बीच समाचार परोसे जा रहे हैं।सोशल मीडिया के रूप में यूट्यूब चैनल बनाकर यूट्यूबर सामाजिक गतिविधियों और खबरों को तेजी से सामने लाने का काम कर रही है।जिले के कई ऐसे कलमकार हैं,जिन्होंने जिले के बाहर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी कलम के जादू से कलमकारों को प्रभावित किए।कई पत्रकारिता के मुख्य धारा के बड़े पदों पर काबिज हुए तो कुछ ने न्यूज एजेंसी और राष्ट्रीय स्तर पर पत्रिका का प्रकाशन में जुटे हैं।
आज पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना कोई आसान बात नहीं है। बावजूद इसके समूचे भारत से लाखों की संख्या में दैनिक पत्र, साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाएं, मासिक एवं पाक्षिक आदि का प्रकाशन अबाध गति से जारी है और पत्रकारिता के गतिमान यात्रा के बीच अररिया जिला भी लगातार अग्रसर है।

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पहला हिन्दी पत्र

पंडित युगल किशोर शुकुल हिन्दी पत्रकारिता के प्रथम सम्पादक एवं प्रकाशक थे। पहला हिन्दी साप्ताहिक पत्र था “उदन्त मार्तण्ड” जो 30 मई 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित हुआ । आर्थिक अभाव के कारण यह पत्र डेढ़ वर्ष बाद 11 सितम्बर 1627 को बंद हो गया। जनवरी 1845 से काशी से “बनारस अखबार” नामक पहला साप्ताहिक पत्र है जो किसी हिन्दी प्रदेश से निकला ।हिन्दी का सबसे प्रथम दैनिक पत्र “समाचार सुधावर्षण “को माना जाता है जो 1854 में प्रकाशित हुआ। इस पत्र के सम्पादक बाबू श्यामसेन थे। इसके बाद 1885 में कालाकांकर से “हिन्दुस्तान” नामक दूसरा हिन्दी पत्र निकला। इसके प्रकाशक राजा रामपाल सिंह थे। इस पत्र का सम्पादन लगातार तीन वर्षों तक मदन मोहन मालवीय ने भी किया था। इस बीच विभिन्न क्षेत्रों से अनगिनत पत्र-पत्रिका निकले और बंद होते रहे। सन् 1870 में रॉबर्ट महोदय ने “इण्डियन स्टेट्समैन” की स्थापना की थी जो “स्टेटसमैन” के नाम से जानी जाती है।बाल गंगाधर तिलक ने एक मराठी पत्र ‘केसरी’ का प्रकाशन शुरू किया। जिसमें तिलक ने स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित जोशीले और भड़काने वाले कई लेख लिखे । फलस्वरूप क्रांतिकारी दामोदर चिपलेकर द्वारा लेफ्टीनेन्ट एर्वस्ट आदि की हत्या के लिए प्रेरणा देने वाला और इस हत्या के लिए इसे दोषी ठहराया गया। उस समय स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिका निभाने वाले सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मोतीलाल घोष, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, लाला लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल, श्याम कृष्ण वर्मा, मदनमोहन मालवीय, चितरंजन दास, फिरोजशाह मेहता, एनी बेसेन्ट, गोखले आदि के नाम प्रसिद्ध पत्रकारों में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
देश की आजादी को लेकर कई समाचार पत्र भारत के बाहर दूसरे अन्य राष्ट्रों से भी निकलना शुरू हुआ। मसलन अमेरिका से “फ्री हिन्दुस्तान”, यूरोप से “तलवार”, “वन्दे मातरम्”, इंडियन सोशलिस्ट” आदि लोकप्रिय पत्रों में से थे। ऐसे में अंग्रेजों ने आजादी की तीमारदारी करने वाले पत्रों को कुचलना शुरू कर दिया। फलस्वरूप भारतीय पत्रकारिता दो दल में बदल गये। एक दल जहां निर्लज्जतापूर्वक अंग्रेजों के हर कदम का स्वागत करते वहीं दूसरा दल-विरोध । सन् 1918 में पटना में ‘सर्चलाइट’ की स्थापना हुई, जिसके संस्थापक सच्चिदानन्द सिन्हा थे। बाद में यहाँ से अंग्रेजी में “इंडियन नेशन” का प्रकाशन किया गया। 1922 में “आनन्द बाजार पत्रिका”, 1914 में “बसुमति”, 1909 में मदनमोहन मालवीय द्वारा “लीडर” का प्रकाशन शुरू किया गया । 1920 में काशी में प्रसिद्ध हिन्दी दैनिक “आज” का प्रकाशन हुआ। 1937 में “हिन्दुस्तान स्टैण्डर्ड” और “युगान्तर” का प्रकाशन शुरू हुआ। स्वतन्त्रता के बाद पत्रकारिता पर से कई प्रकार के प्रतिबन्ध हटा लिये गये। 1952-54 में भारतीय प्रेस के विकास हेतु “प्रेस कमीशन” की स्थापना की गयी। प्रेस कमीशन के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी० एस० राजाध्यक्ष थे। यह प्रेस आयोग जांच कानून 1952 बारा (एल० एक्स० 1952) के अंतर्गत हुआ । अध्यक्ष के अलावे नौ सदस्यों की एक टीम बनायी गयी जिन्होंने पत्रकारिता के उत्थान के लिए विभिन्न पहलुओं पर जांच कर कई प्रकार के सुझाव दिए । जिन्हें लागू भी किया गया। यही कारण रहा है कि भारतीय पत्रकारिता ने काफी शक्तिशाली रूप धारण कर लिया।
भारत में पत्रकारिता का इतिहास
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व ही गोवा में सन् 1550 में पहला छापाखाना स्थापित हुआ था, जहां मलयालम् भाषा में केवल इसाई धर्म की पुस्तक छपती थी। सन् 1662 में बम्बई में भीमजी पारेख ने एक छापाखाना स्थापित किया। इसके बाद धीरे-धीरे देश के अन्य क्षेत्रों में भी छापेखाने बैठाये गये ।भारत में पहला समाचार पत्र निकालने का प्रयास ईस्ट कंपनी के एक अधिकारी विलियम बोल्ट ने किया था,लेकिन उसे उसमें सफलता नहीं मिल पायी। भारत का पहला पत्र निकालने का श्रेय जम्स आगस्टस हिंकी को जाता है जिन्होंने 19 जनवरी 1780 को दिन शनिवार कलकत्ता से “बंगाल गजट” या “कैलकटा जनरल एडवटाईजर” नामक पत्र निकालकर भारत में पत्रकारिता की नींव रखी। सरकार की आलोचना करने के क्रम में बारह इंच लम्बा और आठ इंच चौड़ा दो पृष्ठों वाला यह समाचार पत्र हेस्टिंग्स द्वारा कोपभाजन का शिकार बना। 1782 में इस पत्र के छापाखाना तथा सारी सम्पत्तियों को हेस्टिंग्स द्वारा जब्त कर लिया गया। नवम्बर 1782 में कलकत्ता से दूसरा समाचार पत्र ‘इण्डियन गजट’ निकला जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों की सूचनाएँ छपा करती थी। 1784 में कलकत्ता से तीसरा पत्र “कलकत्ता गजट”, 1789 में मद्रास (चेन्नई) से पहला पत्र “मद्रास कूरियर”, 1789 में बम्बई (मुम्बई) से “बॉम्बे हेराल्ड”, 1795 में मद्रास से साप्तहिक “मैड्रास गजट” आदि का प्रकाशन हुआ । सन् 1822 में राजा राममोहन राय ने एक फारसी भाषा का पत्र “मिरात-उल-अखबार” और अंग्रेजी में “Brahmanical magazin” निकाले। आगे चलकर “जाम-ए-जहानुमा” और “शम्स-उल-अखबार” भी फारसी भाषा में प्रकाशित हुआ ।
अध्यक्ष
Bihar Press Association Araria

श्री परवेज अलम

कार्यकाल - 03.01.2016 से 01.03.20

श्री अमरेंद्र कुमार

कार्यकाल - 01.03.20 से 04.08.24

श्री राकेश कुमार भगत

कार्यकाल - 04.08.24 से

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारतीय पत्रकारिता का सबसे दुर्दिन और दुर्भाग्यपूर्ण 25 जून 1975 रहा जब सरकार द्वारा समाचार पत्रों पर पूर्ण सेंसरशिप लागू किया गया । पत्रकारों ने इसके खिलाफ बिगुल फूंका। निर्भीक पत्रकारों को जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया । लेकिन अन्ततः जीत पत्रकारों की हुई। सन् 1977 में आम चुनावों की घोषणा होने पर समाचार पत्रों से सेंसर हटने पर एक नई प्रकार की ‘खोजी पत्रकारिता’ का प्रादुर्भाव हुआ जिसके कई रोचक परिणाम पूर्व में तथा वर्त्तमान में देखने को मिले। इसके कारण कई राजनेताओं की गद्दी छीन ली गयी।
भारतीय प्रेस परिषद् की स्थापना 4 जुलाई 1966 को हुई जबकि परिषद् की प्रथम बैठक 12 दिसम्बर 1966 को हुई। प्रेस परिषद् के अध्यक्ष जी० आर० मधोलकर थे। एक मार्च 1979 को एक नई प्रेस परिषद् की स्थापना हुई। इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति अमरनाथ ग्रोवर बनाये गये ।पत्रकारों से सम्बन्धित भी कई प्रकार के संगठन का निमार्ण किया गया। कई प्रकार के संगठन आज भी पत्रकारों के लिए कार्य करते हैं जो पत्रकारों के हक-हकूक के लिए लड़ाई लड़ती है। पत्रकारों के हितों और उत्थान के लिए पत्रकार तथा गैर पत्रकार द्वारा अपना अलग-अलग संगठन बनाया गया है।

पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास: वैश्विक से जिला स्तर तक

राहुल कुमार ठाकुर
पत्रकार समाज की गतिविधियों के अवलोकक, प्रतिवेदक,समीक्षक एवं टीकाकार रहे हैं। जिसके कारण इनकी महत्ता को देखते हुए लोकतान्त्रिक समाज में व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद इन्हें “चौथे स्तम्भ” की संज्ञा दी गयी है। पत्रकार वर्ग के कंधों पर समाज का बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। पत्रकारों को विशेष योग्यता एवं प्रशिक्षण दिलाने के उद्देश्य से सन् 1833 में इंग्लैण्ड में “इंग्लैण्ड्स चार्टर्ड इंस्टीट्यूट आफ जर्नलिस्ट्स” एवं 1933 में अमेरिका में “अमेरिकन न्यूजपेपर गिल्ड” की स्थापना की गयी ।विश्वविद्यालय में पत्रकारिता को 1879-84 में सर्वप्रथम मान्यता अमेरिका के मिसेरी विश्वविद्यालय (कोलम्बिया) में मिली, जबकि 1912 में न्यूयार्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने सर्वप्रथम पत्रकारिता का स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम आरम्भ किया। वर्तमान समय में पत्रकार लिखने के साथ-साथ संचार माध्यमों के सभी अन्वेषणों का प्रयोग समाचार संकलनएवं प्रस्तुति में करता है। समाज में परिवर्तन लाने या लोगों को जगाने का पत्रकार और पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम है। शिक्षित व्यक्ति समाचार पत्र पढ़े बिना दिन का प्रारंभ जहां ठीक से नहीं कर पाता, वहीं अधिक पढ़े लिखे व्यक्तियों के साथ-साथ कम पढ़े लिखे व्यक्ति भी समाचार जानने की इच्छा रखता है।जो अपनी प्यास संचार के विभिन्न माध्यमों से पूरा करता है। मानव में समाचार जानने की जिज्ञासा अनादिकाल से रही है। प्राचीन काल में राजाओं द्वारा डुगडुगी पीटकर मुनादी करने वाले कर्मचारी जनता तक समाचार पहुँचाने का कार्य करते थे। सम्राट अशोक के पास तो भेदिए, गुप्तचर तथा राजदूत समाचार प्राप्त करने के अनेक साधन थे। पत्रकारिता का इतिहास कई प्रमाणों से भरा पड़ा है। ई०पूर्व 60 में जब जूलियस सीजर ने रोम साम्राज्य की परिषद् का नेतृत्व सँभाला था उसने शीघ्र “एक्टा डायनी ” नामक दैनिक समाचार बुलेटिन शुरू करवाया था।चीन द्वारा मुद्रण कला के विकास के साथ हीविश्व का पहला समाचार पत्र चीन से “पिकिंग गजट” का प्रकाशन शुरू हुआ।1476 में इंग्लैण्ड में छापाखाना के अविष्कार के साथ लगभग 85 वर्षों के पश्चात् 1561 में एक पृष्ठीय समाचार पत्र “न्यूज आउट केन्ट” तथा अनियतकालीन समाचार पत्र “न्यू न्यूज” 1575 में छपना शुरू हुआ। नियमित रूप से अंग्रेजी में पहला समाचार पत्र 1620 में एमस्टर्डम से निकलना शुरू हुआ। बोर्ने, थामस आर्चर तथा नाथलियन बटन अंग्रेजी पत्रकारिता के इतिहास के अग्रणी व्यक्तियों में से थे। ब्रिटेन में बटन साहेब को लोग ‘लंपट’ कहा करते थे। 1641 में बोर्ने और आर्चर महोदय ने मिलकर संसद की कार्यवाही वाली ‘डायनर्ल अकरन्सेज’ निकाला। 1641 में ‘मारक्यूरियस ओलिकस’ नामक पत्र का प्रकाशन भी शुरू हुआ, किन्तु सरकार की सख्ती के कारण 1641 का यह दोनों पत्र फिर से प्रकाशित होना बंद हो गया। 16 वीं सदी में ही विश्व के दूसरे अन्य देशों से विभिन्न प्रकार के दैनिक पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। नीदरलैण्ड में ‘न्यूजाइटुंग’ 1641 में फ्रांस’, का पहला पत्र ‘गजट दी फ्रांस’, 1667 में बेल्जियम में “गजटवेन गटे”, जर्मनी”, फ्रैंकफर्टर जनरल”, स्विटजरलैण्ड में “जर्मनी डी जैनिवे”, अमेरिका में 25 सितम्बर 1690 को “पब्लिक आकरन्सेस बोथ फारेन एण्ड डोमेस्टिक” फिर 1704 में ‘बोस्टन न्यूज लेटर’ धीरे-धीरे 18वीं सदी के 1851 में ‘न्यूयार्क टाइम्स’, 1872 में ‘बोस्टन ग्लोब’, 1877 में ‘वाशिंगटन पोस्ट’ 1908 में ‘द क्रिश्चियन साइन्स मॉनिटर आदि का प्रकाशन हुआ ।

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    सचिव
    Bihar Press Association Araria

    श्री अमित कुमार अमन

    03.01.16 से 01.03.20 तक
    01.03.20 से 04.08.24 तक
    04.08.24 से अबतक

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